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आयुर या आयुर्वेद, आप क्या चुनेंगे?

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अमर रहना मनुष्य का अतृप्थ आशा रह गया है। मृत्यु को जीतने का तरीका हम ढूंढते रहते हैं। लेकिन हमेशा निराशा ही हमारे प्रयासों की फल बन पड़ी है। आयुर के खोज मे मनुष्य अपने कीमतीदार आयुषकाल बीतते रहते हैं। मगर शाश्वत जीवन पर हमारे हाथ तो ना रख पाएँ हैं। आयुर का विद्या तो पा लिए है, अनंत जीवन छूट जाती रहती है। मौत को जीतनेवाले, मनुष्यों मे कोई नही है - अभी भी या अब के पहले भी।

यह हर निजी व्यक्ति का समस्या ही नहीं बल्कि जाति जनो और देशों की समस्या भी बन चुकी है। इसीलिए तो भारत देश मे एक विशेष मंत्रालय भी बना चुका है आयुष नाम पे। AYUSH आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध, और होमियोपथी का मिलन है यह आयुष। ये सब अपने अपने तरीके पे शासवथ जीवन के खोज मे पड़े हैं। वास्तव मे इस ढूंढ का शुरुआत हुआ युगो पहले और यह भी भारत मे। लेकिन दुख की बात यह है की आज तक लोग मरते ही रहते हैं। पुराणो के जो मृथ्युंजय है वह है कहाँ? सबी मनुष्य धूल मे मिल जाते रहते हैं। "मै कैसे अभागा मनुष्य हूँ? मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा?" यह ही कलोंकाल हर व्यक्ति की चिंता पड़ गई है।

आयुर का विध्या तो मनुष्य ने ढूंढ लिया है। यह करो, वह करो यह मत करो वह मत करो ऐसा करो ऐसा मत करो - इस सूची का अंत ही नहीं है। खाने पीने सोने की नियमों को हम पता लग चुके हैं जिससे हम अपने जीवन काल बढ़ाएँ। आयुर विध्या से कई विधियों के वश मे हम अपने को उलझायेँ हैं इस उम्मीद मे कि इन विधियों को पालन करेंगे तो दीर्घायुष्मान बनेंगे। अनंत जीवन पाने का अभिलाषा तो है ही लेकिन अनंत जीवन अपनाने का भाग्य किसीको अभीतक न मिला। हम सबमे निराश ही बची है।

दीर्घायु पाने और अनंत जीवन बिताने की कोई रास्ता है? मनुष्यों का सृष्टिकर्ता को तो यह सूचना ज़रूर मालूम होगा ही। मनुष्य के रूह, जान और बदन के रचयिता को जरूर पता होगा कि मनुष्य कैसे अमर रहे। तो आओ हम उनसे ही पूछ लें यह कैसा साद्य होगा।

'क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।' -यूहन्न 3:16 (पवित्र बाइबिल)

विश्वास। हम भारतीय सब कुछ विश्वास करते हैं। विशेषतः यह विश्वास करते हैं कि कोई बकरी या मुर्गे के बलिदान करके उसके खून बहाएँ तो हमारे पापों की परिहार हो जाएगी। (मुसलमान लोग इसे बक्रीद कहलाते हैं)। शाकाहारी नारियल के पानी बहाते हैं। पेठा मे खून की जगह कुमकुम लगाकर उसे फटके विश्वास करते हैं की इस बलिदान हमारे पापों के नाश करेगी। कुछ लोग खुद अपने शरीर को मनुष्य और प्राणी के सेवा मे त्याग करते हैं इस विश्वास पर कि अपने पापी करतूतों का परिहार मेलें। लेकिन मनुष्य के पापों का परिहार इन कोई भी तरीकों से हो न पाती। इसीलिए तो हमे इन अनुष्ठानों को बार बार पालन करने के बाद भी पुण्य प्राप्त करने का तृप्त और निष्च्य नहीं होती। यह सब बेकार काम बनी रहती है।

इस दुनिया मे कई लोग शाश्वत जीवन का मार्ग दिखाने का प्रयास किये हैं। वे ऐसे मार्ग न दिखा पाये ही नहीं बल्कि वे उस मार्ग का पता लगाके भी उसमे चल नहीं सके। अगर ऐसा हो सके तो ये जो सैकड़ों धर्म हमारे चारों ओर हैं उनके स्थापकआज कहाँ? सब मर चुके हैं। सचमुच वे अमर नहीं रहे। खेद की बात यह है कि करोड़ों भक्तजन इन सतगुरुओं के विश्वासी बनाके अपने जीवन बर्बाद करते रहते हैं।

अगर विश्वास परमेश्वर के बनाए हुए मार्ग पर हो तो पापों का निवृति, परिहार, और विमोचन ज़रूर मिलेगी। लेकिन यीशु ने कहा, "मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता"। यीशु मसीहा ने सिर्फ मार्ग दिखाने के लिए नहीं उपस्थित हुए। वह ही मार्ग बनाके आए। परमेश्वर तक पहूंचने का सच्चा और पक्का मार्ग यहीं हैं। भ्रष्ट मनुष्य और विशुद्ध परमात्मा के बीच मे जो पाप है उसे हटाके हमे उनतक पहूंचाने का मार्ग है यह यीशु। पापों को हटाने के लिए उसका परिहार करना अवश्य था। इसीलिए तो यीशु ने अपना खून बहाया। यह परमेश्वर का मेम्ना है, जो जगत के पाप उठा ले जाता है।

परमेश्वर के बनाए हुए इस मार्ग यीशु को जो कोई अपनाता है , जो कोई विश्वास करता है, और अपने पापों की क्षमा उससे मांगता है, उसे मसीहा स्वीकार करता है। हमारे पापों का विमोचन देता है।

पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है। वह आप भी मनुष्यों के समान मांस और लोहू के भागी होकर मनुष्यों का सहभागी हो गया; ताकि मृत्यु के द्वारा उसे जिसे मृत्यु पर शक्ति मिली थी, अर्थात शैतान को निकम्मा कर दे। अर्थात अपने मृत्यु से मृत्यु को जीत लिया। सचमुच यही यीशु है असली मृथ्युंजय। उसके मृत शरीर अब धूल मे शामिल नही है। यीशु के मृत्यु के तीसरे दिन पवित्रता की रूह के भाव से मरे हुओं में से वह जी उठने के कारण सामर्थ के साथ परमेश्वर का पुत्र ठहरा है। वह आज भी जीवित है। इसीलिए तो उसने अपने बारे मे कह सके: "पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूं, जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए, तौभी जीएगा"। "मैं मर गया था, और अब देख; मैं युगानुयुग जीवता हूं; और मृत्यु और अधोलोक की कुंजियां मेरे ही पास हैं"।

तुम्हारा मन व्याकुल न हो, तुम परमेश्वर पर विश्वास रखते हो मुझ पर भी विश्वास रखो। मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूं। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूं, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहां ले जाऊंगा, कि जहां मैं रहूं वहां तुम भी रहो।

हम कोई भी धर्म जाती या भाषा के हो, विश्वासी लोग इस धरती के पार स्वर्गलोक मे उसके साथ हम अनंत जीवन बिताएँगे। आश्चर्य की बात यह है कि हम इसी बदन मे रहेंगे। तथापि हमारा बदन गौरवान्वित होके परमेश्वर की महिमा दिखाने योग्य बन चुका होगा। दीर्घायुष्मान होंगे हम। अमर रहेंगे हम॥

आयुर या आयुर्वेद, क्या चुनेंगे आप?

(अधिक जानकारी के लिए आप हमसे या आपके आसपास के कोई यीशु के विश्वासी से संपर्क करे। अंग्रेज़ी मे बहुत कुछ चीज़ हैं इसी वेबसाइट मे। इस लिंक को क्लिक कीजिये : https://www.jesusreigns.in )

आयुर या आयुर्वेद, आप क्या चुनेंगे?
Topic
Life; Victory over death
Category
Gospel
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